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Sunday, February 12, 2012

सोनू की जिद और नाहरगढ़ दर्शन,जयपुर



गढ़ का रास्ता
पिछले दिनों मुझे किसी काम से जयपुर जाना पड़ा वैसे जयपुर तो बहुत बार आना जाना रहता है पर ज्यादा तर काम की भागदोड़ ही रहती हैं अपने जिस काम के लिये जाते है उसे निपटाने में ही समय पुरा हों जाता हैं सारे दिन भागदोड़ रहती हैं और फिर शाम को वापस आ जाता हूं इस लेकिन इस बार जयपुर दोपहर 2.30 की ट्रेन से जाने को संयोग बैठा हुआ यूं मेरे भानजा सोनू जो पिछले 2 सोल से जयपुर में ही रह रहा हैं मिलिटरी एरिया में क्योंकि वहां मेरे जीजाजी की पोस्टींग 7 जाट बटालियन में हैं तो मेरी दीदी व  उसका परिवार वही पर क्वाटर में रहता हैं सोनू ने कई दिनों से जिद कर रखी थी मामा आप अब की बार जयपुर कब आवोगे जब आवो एक दिन आपको हमारे पास ही रूकना पड़ेगा मैने उसे कहा ठीक हैं लेकिन इस बार कई दिनों से जाने का मौका ही नहीं मिल रहा था सोनू रोजाना फोन करके कहता मामा कब आ रहे हो आप आते तो हो नहीं बस बात बनाते रहते हो, फिर दुकान का कोई छोटा सा काम निकल आया और मैंने जयपुर जाने का मन बना लिया मैने तुरन्त सोनू को फोन किया कि मैं कल सुबह आ रहा हूं मै प्रातः 10 बजे वाली गाड़ी से निकलने वाला था कि घर पर जरूरी काम आ निकला भान्जा तो बाट जोये बैठा था 1 बजे फोन किया मामा कहा तक पहुचे मैने कहा मैं तो अभी घर पर ही हूं तब उसने कहा आप आ गये मामा आप बस बहाने बनाते रहते हो आपको आना तो है नहीं कल कह रहे थे सुबह वाली गाड़ी में आ रहे हो लेकिन फिर मुड बदल लिया मैने कहा ले भई अब तो आना ही होगा मैं कल आ जाता लेकिन अब तो तेरी बात के लिए आज ही आ रहा हूं मैं जल्द से नहा धोकर जाने की तैयारी की और पहुच गया स्टेशन और पकड़ ली 2.30 वाली गाड़ी जो शांम 7 बजे जयुपर पहुचाती हैं सोनू ठीक समय पर मुझे स्टेशन पर ही मिल गया हम वहां से मिलिटरी ऐरिया उनके मकान पर पहुचे औरहाथ मुह धोकर खनाखा खया और बतियाते रहें फिर मैने कहा कल सुबह हमें रायसर जाना हैं और कुछ जरूरी कार्य निपटाने हैं और हम सुबह 8 बजे चलने का कार्यक्रम बना कर सो गये सुबह जल्दी उठे और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर नाश्ता किया और चल दिये अपने काम के लिए रायसर के लिए वहा से मुझे कुछ कम्प्यूटर पार्ट खरीदने थे रास्ते में भान्जे ने कहा मामा रायसर बाद में जायेगा पहले नाहरगढ़ देखने चलते हैं 




मैने कहा लेट हो जायेगी लेकिन उसने कहा रायसर दोपहर तक खुलता हैं तब गढ़ देखने की मेरी भी इच्छा जाग उठी मैं भी राजी हो गय हम नाहरगढ़ की तरफ चल पडे काफी लम्बी चढ़ाई हम मोज मस्ती के साथ चढ़ते गये और आनन्द लेते गये पर मुझे क्या पता था ये मौज मस्ती उतरते समय नानी याद दिलायेगी अन्ततः हम उपर पहुच गये रास्ते में झाड़ झखड़ से होते हुए हम उपर पहुचे और वहां पर सबसे पहले बावड़ी के दर्शन किय वहां का दृश्य बहु ही मनोहरम था फिर वहां से पुरे जयपुर को देखा सारा जयपुर बहुत ही सुन्दर लग रहा था वास्तव में वहा का वातावरण जयपुर की कोलाहल से दूर शान्त था वहां जाकर मन को शान्ति मिलती हैं हमने वहा पहुचकर बहुत आनन्द उठाया बस एक कमी नजर आयी वहां पर जे डी ए द्वारा कोई सुविधा नहीं बना रखी हैं ना कोई अच्छी तरह का रख रखाव है ना पिने के पानी की व्यवस्था हैं 
कुल मिलाकर वहां रख रखाव का अभाव सा लगा और लगा कि यह पर्यटक स्थल अपनी सुन्दरता और महत्ता खोता जा रहा हैं वहां की दिवारो पर गंदे गंदे श्लोक लिखे हैं अभद्र शब्द लिखे हैं लेकिन वहा कौन ध्यान दे ये तो पब्लिक प्लेस हैं वहां उपर ऐक होटल है वहा पर बहुत ही मंहगा सामान मिलता हैं
 

मन मोहक और दर्शको को लुभाने वाली बावड़ी
बावडी में पानी आने का लम्बा नाला
हमने बावड़ी में पानी आने वाले नाले की जांच पडताल की कि नाला कहा से होकर आता हैं वह नाला गढ़ के उत्तरी दिवार के निचे से होकर बाहर चला जाता हैं हमने उस नाले के अन्दर भी जाकर देखा लेकिन काफी दूर चलने के बाद हमें घुटन महसूस हुई और हम वापस निकल आये

मेरा भानजा सोनू

हालांकी मैं अपना कैमरा साथ नहीं ले गया था पर सोनू के पास मोबाईल था उससे ही हमने ये फोटों खिचे है।
किले की दिवार में बने झरोखों से बाहार का दृश्य बहुत ही मन मोहक दिखाई देता हैं किले के चारो तरफ की पहाड़ी पथरीली जमीन के बीच में बने दो छोटो टोटे टिले की बालू मिट्टी बहुत ही सुन्दर सुनहरी लगती हैं जहा बच्चे अक्सर खेलते रहते हैं बालू मिट्टी के बने टिल्लों पर बने धोरे बहुत ही मन मोहक लगते हैं


पथरीली जमीन के बिच बने  दो बालू मिट्टी के टिल्ले
और इन टिले के उपर से जयपुर शहर के मकान घरोंदे से दिखाई देत हैं नजारा मन को माह लेने वाला लगता हैं मन करता हैं इन्हीं टिल्लो पर बैठ कर साम तक आनन्द लेते रहें।
पथरीली जमीन के बिच बने  दो बालू मिट्टी के टिल्ले
मेरा भानजा सोनू
गढ़ में बने एक ही आकृति के पांच महल
यहा तक का सफर बहुत ही मजेदार रहा और सब फ्री भी बस चल कर सब देखना पड़ा कोई चार्ज नहीं   लेकिन अब तक 2 घंटे हो चुके थे हमें मस्ती करते हुए अब प्यास लग चुकी थी सोचा चलो गढ़ पर चलते हैं वहा चल कर पानी पिया जायेगा पर जब गढ़ के मुख्य द्वारा पर पहुचे तो पास वाली खिड़की से आवाज आई कितने टिकट देने हैं  मैने कहा भाई टिकट बाद में पहले पानी मिलेगा क्या? उन्होने ना में सिर हिलाया और कहा पहले टिकट लो और फिर आगे जाकर उपर होटल हैं वहां पर पानी मिलेगा। भान्जे ने बताया मामा वहां तो सब कुछ बहुत महगा मिलता हैं  लेकिन क्या करते हमने टिकट ली 10 - 10 रूपये की और उपर की तरफ चल दिये प्यास सता रही थी अन्दर मरम्त का कार्य चल रहा था वहा मजदूरों से पानी मांगकर पिया उन्होने कहा भाई यहां पर पानी बहुत महंगा मिला हैं फिर भी बेचारों ने हमें तो पिलाया फिर हम गढ़ मे बने रानीयों केमहल में प्रवेश कर गये वहां के कमरो की दशा देखकर जे डी ए पर गुस्सा आया कि टिकिट के तो पैसे लेता है पर यहां ना तो कोई सुविधा है और ना ही वहां के रख रखाव की कोई व्यवस्था है कमरों के मकानो के दरवाजे  आधे टुटे पडे हैं और कुन्दीयो पर तार से जकडै गये ताले लगे हैं
मन मोहक और दर्शको को लुभाने वाली बावड़ी



महल की सुन्दर चित्रकारी
यहां चित्रकारी बहुत ही सुन्दर और मनमोहक हैं पर बेचारी बीना उचित रख रखाव के लुप्त होती जा रही है। हमने भी उपर जाकर यहां से जयपुर का नजारा देखा  यहाँ पाँच एक समानता वाले महल बने हुए हैं जिनके  नाम चाँद प्रकाश महल, और सूरज प्रकाश महल कुछ  इस प्रकार से हैं गढ़ क मुख्य द्वार पर दो पुरानी तोपे रखी हुई है।  यह हैं नाहर गढ़ का नजारा कुल मिलाकर अन्दर से तो बाहर का दृश्य ही अच्छा था । और फ्री भी टिकट में तो कुछ भी देखने को नहीं मिला हां इतना जरूर हैं  ये समझे की 10 रूपये टिकट में पानी पिने को जरूर मिल गया अब बारी थी वहां से रायसर जाने की तो उसके लिए वहां से निचे उतरना जरूरी था पर उछल कुद से पैरो ने तो पहले ही जबाब दे रखा था हम उतरने लगे उतरते उतरते काफी हिम्मत रखनी पड़ी जोर भी बहुत आया लेकिन क्या करते पैदल ही उतर रहें थे फिर युक्ति निकाली उल्टा मुह करके पिछे की तरफ उल्टे चले और इस प्रकार मौज मस्ती करते हुए जेसे तैसे नीचे उतर आये पैर जबाब दे चुक थे फिर सिटी बस पकड़ी और रायसर आये और वहां से दो ठण्डे गनने के गिलास पिये और फिर अपना जरूरी समान जुटाया और  क्वाटर की तरफ चल दिये जब घड़ी देखी तो सांम के 6.50 बज चुक थे दिदी की डांट खानी अभी बाकी थी क्योकि हम सिर्फ नास्ता करके की गये थे और दोपहर तक ही आने की कह कर गये थे वहां पुचते ही दो चार डांट खायी ओर सोनू ने युक्ति निकाली कि मामा चल आर्मी के होल में नयी पिक्चर लगी हैं देखकर आते हैं मन तो  जाने का नहीं कर रहा क्योंकि बिलकुल थक चुके थे लिकिन डाटों से पिछा छुटवाने के लिए खिसक लिये और दो ढाई घंटे बिताने के बाद 10 बजे लोटे तब तब आकर खाना खाया और सो गये और सुबह 8 वाली गाड़ी से आपने घर की तरफ चल दिये ये था मेरा नाहर गढ़ का सफर आपको कैसा लगा।


















आपके पढ़ने लायक यहां भी है।

 

 

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 

 

 

 

ये काटा वो मारा के साथ बगड़ की मकर-संक्रांति

 

 

 

नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाएं, मालीगांव

मेरे बाप पहले आप( लक्ष्य का बाल हट )

कड़ाके दार सर्दी घने कोहरे के साथ,मालीगांव



 

3 comments:

  1. bahut hi khoobsurat safarnama..
    sach nayee jagah par jaakar dekhne-samjhne ka alag hi aanand hai...naya anubhav milta hai ..hardin ki ek hi tarah ke routeen se hatkar dekhne ki baat hi nirali hai..
    sundar prastuti hetu dhanyavad

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  2. अधुरी जानकारी है यार, राजा नाहर सिंह के नौ रानियां थी तथा सभी के लिए नौ एक जैसे कमरे बना रखे हैं महल में। सभी नौ रानियों के नाम साथ "प्रकाश" प्रयोग किया गया है। उनके कमरों में ठंडी हवा आने के लिए पुराने जमाने के कूलर लगे हुए हैं और भी बहुत कुछ है वहाँ देखने के लायक

    बाकी बातें बाद में………………वैसे चित्र बढिया हैं।

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  3. aapke tour ki photo dekhkar and story padhkar easa laga mano hum ghar baite - baithe he nahargrah k darshan k liye....good collection bhai shabh ....thanks.....ye sony vahi hai jo shyad pahle apne gaon may he padtha tha.....

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