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Sunday, October 7, 2012

कटरा से मां वैष्णो देवी के दरबार तक

 बाघा बॉडर अमृतसर से चलने के बाद हम अपने  अगले व मुख्य दर्शन स्थल जम्मु, कटरा मां वैष्णो देवी के दरबार के दर्शन के लिये  चल पड़े पुरी रात का सफर तय करना था सो  रात के खाने के बाद बस चलती रही और 27 अगस्त को प्रातः 4 बजे के लगभग बस कटरा की पावन स्थली कटरा पहुची, हमने वहां पर होटल सिटी सेंटर को अपना रेन बसैरा बनाया  वहा अपनी सुविधानुसार कमरे किराये पर लिये बस से अपना अपना सामान उतारा और अपने कमरों में रखा और फिर नित्य क्रियाओं से निवृत होने में लग गये, तथा कुछ आराम करने के बाद प्रातः 6 बजे स्नान करने के बाद माता रानी के दर्शनों पर चलने के लिये इक्ट्ठा हो गये। अब हमें कटरा से 15 कि.मी. दूर  त्रिकुट पर्वत पर बने माता के दरबार तक माता के दर्शनों के लिये पहाड़ी चढ़ाई करनी थी सबको अपनी अपनी सुविधानुसार चढ़ाई चढ़ने के निर्देश दिये गये तथा लौटकर वापस इसी होटल पर मिलने के निर्देश भी दिये गये।
कटरा से माता वैष्णों देवी का दरबार (भवन) लगभग 15 किलोमीटर दूर त्रिकुट पहाड़ पर स्थित है। पुरी की पुरी चढ़ाई पहाड़ी है। चढ़ने के लिये वहां पहाड़ पर गोलाई नुमा रास्ते बनाये गये हैं तथा उपर तक जाने के लिये खच्चर (टट्टू), पालकी, बग्घी, पैदल आदि की सुविधा ही है। अगर किसी से चला नहीं जाता है तो वो खच्चर(टट्टू) व पालकी  आदि किराये पर ले सकता हैं उनकी अपनी रेट हैं वो उसे वहां के दर्शन करवाकर निचे तक वापस छोड़ देते हैं 

 हालांकि आजकल एक रास्ता और बनाया जा रहा हैं वहा आटो रिक्सा भी चलने लगें हैं लेकिन वो अभी तक सामान वगैर आदि ढ़ोने के काम ही आ रहे हैं लगता हैं एक दो साल में वो भी सवारी यात्रा के लिये सुविधार्थ काम आने लगेगें हमारे सामने 16 कि.मी. की वो दुर्गम चढ़ाई थी पर मन में माता के दर्शनों की इच्छा और श्रृद्धा थी।

  और फिर उस 16 कि.मी. के रास्ते में एक मीटर की जगह ऐसी नहीं मिलती है जहा पर यात्रियों का झुण्ड न मिले अर्थात पुरा रास्ता माता के जयकारों करते दर्शनार्थियों से भरा रहता हैं सो चलने में एंकान्त और थकान महसूस ही नहीं होती है।  हममें से सभी पैदल ही चढ़ाई करने वाले थे ,सो हमारी यात्रा या चढ़ाई शुरू हुई
 सबसे पहले हमने कटरा में माता वैष्णों देवी स्थापना बोर्ड के कार्यालय से यात्रा पर्ची कटवाकर यात्रा शुरू की, क्योकि उस पर्ची को दिखाकर ही उपर माता के मन्दिर में दर्शन के लिये प्रवेश दिया जाता है। बीना उस पर्चि के मन्दिर में नहीं जाने दिया जाता हैं इसलिये हमने पर्ची कटवाई  और अपनी यात्रा शुरू की चढ़ाई के पहले स्टेप में हमें यात्रा की पहली सुरक्षा चोकी के अन्दर से अपनी तलासी देते हुये प्रवेश करना पड़ा वहां पर कोई भी धूम्र-पान से सबंधी वस्तु ज्वलन शील वस्तु  वीडियो केमरा ,हथियार आदि की तलाशी होती है और ऐसे वर्जित संसाधन उपर नहीं ले जाने दिया जाता है।  हमारे पास वीडियो और फोटो केमरा दोनों थे तो उन्होने हमें अपना वीडियों केमरा वहीं जमा कराने के निर्देश दिये और हमने वहीं पर बने काउटर पर वीडियों केमरा जमा करवा दिया और अपना फोटो केमरा साथ लेकर आगे की चढ़ाई शुरू कर दी  वहां से पर्वत के उपर चारों तरफ छाई हरियाली और उससे होकर गुजरता रास्ता बहुत ही सुन्दर लग रहा था पुरा रास्ता माता के जयकारे करते श्रृद्धालुओं से भरा हुआ था  लोग नाचते गाते जयकारा लगाते अपना सफर तय कर रहें थे  पहली सुरक्षा चौकी से चलने के बाद पहला दर्शन स्थल आता हैं बाण गंगा नदी ऐसा कहा जाता हैं यहां पर माता ने वीर हनुमान जी महाराज की प्यास बुझने के लिये  पहाड़ में बाण मारकर ये नदी निकाली थी और अपने बाल उस पानी से धोये थे और हनुमान जी महाराज ने इस पानी से अपनी प्यास बुझाई थी  इसलिये इन नदी का नाम बांण गंगा या बाल गंगा पड़ा यहां इस नदी में बहुत से यात्री स्नान करके अपने पाप धोते हैं इसका पानी बहुत ही सफेद, पवित्र तथा शीतल हैं और यहां का दृश्य तो बहुत ही मन भावन हैं  हमने भी यहां अपने हाथ मुह धोये और यहां दर्शन किये और फिर अपनी आगें की चढ़ाई शुरू कर दी।

 पुरे रास्ते में यात्री सुविधार्थ रास्ते के दोनों तरफ दुकाने बनी हुई हैं जहां जरूरत और खाने पीने का सामान मिलता है तथा चाय नास्ते की व्यवस्था भी बहुत अच्छी हैं हर 500 मीटर की दूरी पर शीतल पानी की प्याऊ बनी हुई हैं उपर से निचे देखने पर कटरा शहर बहुत ही सुंदर लगता हैं पहाड़ी की तलहटी में बसा कटरा शहर एक अलग ही पहचान लिये हुये हैं  उपर पहाडी के मनोरम दृश्य मन भावन और मन को शान्ति प्रदान करने वाले है। ऐसा माना जात हैं यहा आकर अशान्त से अशान्त मन को शान्ति मिलती है।

 जयकारे लगाते लगाते हम चलते जा रहे थे कटरा से लगभग 5 कि.मी दूरी पर  आता है दुसरा दर्शन स्थल चरण पादुका मन्दिर ऐसा कहा जाता है कि भैरूनाथ से अपना हाथ छुड़वाकर जब माता यहां आई तो यहां माता ने रूककर पिछे मुडकर भैरूनाथ को देखा था कि कही  भैरूनाथ पिछे तो नहीं आ रहा हैं इसलिये यहां इस स्थल  पर माता के चरण टिके वहां आज भी माता के चरणों के निशान हैं इस लिये इस जगह को चरण पादुका कहा जाता हैं यहां बहुत भीड़ लगी रहती हैं और यह मन्दिर बहुत ही भव्य मन्दिर है। हमने भी यहां माथा टेका  । यहां पर रास्ते के दोनों तरफ काफी सारी दुकाने हैं
 यहा हमने भी जलपान गृहण किया और आगे की तरफ बढ़ लिये  इसके बाद लगला स्थल हाथी मत्था सांझी छत जहा हेलीपेड भी बना हुआ हैं वहा से होकर हम अपने दर्शन स्थल माता के दरबार की तरफ बढ़ रहे थे  फिर कटरा से 7  की.मी. दुर  आता है अर्द्ध कुमारी धाम यहाँ पर माता ने नो माह तक इस गुफा में रहकर तप किया किया था इसको गर्भ जुन के नाम से भी जाना जाता हैं यहां पर भी पर्ची नम्बर लेकर इस गुफा के दर्शन किये जाते हैं  यहा पर इस  पतली गुफा के अन्दर से गुरना होता है। अर्द्ध कुमारी से 1 कि.मी पहले माता के भवन के लिये दो रास्ते फट जाते हैं एक वाया अर्द्ध कुमारी और एक वाया हीमकोटी हमने हिमकोटी वाला रास्ता चुना क्योंकि वो 2 कि.मी सोर्ट कट था और अर्द्ध कुमारी पर काफी भीड़ भी लगी रहती हैं इसलिये हमने सोचा यहां तो शाम तक दर्शन नहीं हो पायेगें तो पहले माता रानी के दरबार के दर्शन ही कर लिये जाये तो हमने हिमकोटी का रास्ता चुना 
वहां से हम सांझी छत पहुचे जहा पर हेली पेड बना हुआ हैं कटरा से यात्री हेलीकोपटर द्वारा भी यहां तक आते है। पर वो पैसे वालों की बात हैं सो उसे छोड दिया जाये 


 श्रृदालु ढ़ोल पर नाचते गाते माता के जयकारे लगाते आगे बढ़ रहे थे  हम भी उनमें शामील हो लिये और सफर का आनन्द लेते हुये भवन की तरफ जा रहे थें अन्तहः हम माता के भवन के सामने पहुच गये वहां हमने अपनी कटरा से लाई गई पर्ची दिखाकर अपना ग्रुप नम्बर लिया जो 159 था गुप नम्बर से ही अन्दर प्रवेश दिया जाता हैं यहां से आगे  प्रसाद के सिवाय कुछ भी साथ नहीं ले जाने दिया जाता हैं वैसे तो सुरक्षा की दृष्टि से रास्ते में भी तीन चार चोकियां बनी हुई हैं पर यहां तो प्रधान चोकी हैं वहां पर फ्री लोकर की सुविधा उपलब्ध है लोकर की चाबी लेकर अपना सामान लोकर में रखकर  ही आगे के लिये प्रवेश दिया जाता हैं हमने भी अपना सामान लोकर में रखा और माता को भेंट चढ़ाने के लिये वहां पर बनी असंख्य दुकानों में से एक दुकान से माता का प्रसाद जो सिर्फ नारियल मखाना, खिल्ली वगैरह होता हैं लिया और दर्शन के लिये चल पड़े दरबार की तरफ  वहां पर रेलिंग लगी हुई हैं उनमें से घुमकर जाना पड़ता है पर उस दिन हमारे सौभाग्य से भीड़ बहुत कम थी इसलिये हमने जल्दी से ही उस रेलिंग को पार कर लिया तथा मन्दिर मुख्य द्वारा पर पहुच गये वहां हमें फिर से तलाशी देनी पड़ी और आगें बने एक काउटर पर हमारे द्वारा साथ लाया गया प्रसाद नारियल चढ़ाया गया मैन पिण्डी स्थल तक कोई प्रसाद चढ़ने के लिये नहीं ले जाने दिया जाता है। और पहुच गये माता वैष्णो देवी की उस पवित्र गुफा के सामने हमने उस पवित्र गुफा को देखकर अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझा और मन ही अम कहा अहो! भाग हमारे जो हमें यहा के दर्शन हुये। 

 हमने दर्शन के लिये उस गुफा में प्रवेश किया यह गुफा आजकल संगमरमर पत्थर से तैयार कर दी गई पहले ये बिलकुल प्राकृतिक हुअ करती थी ये गुफा लगभग 15 मीटर लम्बी हैं जहां एक द्वारा प्रवेश के लिये तथा एक द्वारा निकासी के लिये बना हुआ है।  गुफा में चलते चलते हम पहुच गये मां वैष्णो देवी के उस पवित्र स्थल पिण्डी स्थल के पास वहां हमने अपना माथा टेका माता से अपनी मन्नत मांगी और माता की पिण्डियों के दर्शन कर  अपने जीवन को धन्य बनाया यहां के बारे में ऐसा कहा जाता हैं यहा पर ही आकर माता ने अपना भैरव नाथ को मारा था और यहां ही अपना स्थान बनाया था  यहां से माता ने भैरव नाथ का सर काट कर सामने उपर बनी पहाड़ी पर जाकर गिराया था माता से भैरव नाथ द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने उसे वचन दिया था कि जब तक मेरे दर्शनों के बाद अगर दर्शनार्थि भैरू जी के दर्शन नहीं करेगा तब तक उसकी मनोकामना पूर्ण नहीं होगी।  इसलिये यहां आने वाले यात्री माता के दर्शनों बाद वहां से दो की. मी. दूर भैरव नाथ के मन्दिर में उसके दर्शन करने जरूर जातें हैं हमने माता की पिण्डियों के दर्शन किये वहां पर तीन पिण्डी बनी हुई एक पिण्डी मां लक्ष्मी की दुसरी माता सरस्वती की और तीसरी माता दुर्गा या माता महाकाली की मानी जाती हैं अतार्थ यहां माता महाशक्ति का सम्पूर्ण शक्ति रूप विद्यमान है। इसी जगह के दर्शन माता ने पहली बार पंडित श्रीधर को माता ने स्वपन में दिये थे।


 माता के चरणें में वहीं बांण गंगा नदी बहती हैं उसका कलरव मन को लुभाने वाला हैं और उसकी एक नाली चरण अमृत के लिये बारह निकाली गई जहां से लोग पात्रों में भरकर उस पवित्र जल को अपने घर ले जाते हैं माता की गुफा के बाहर ही निचे एक प्राचीन शिवजी की गुफा भी  बनी हुई हैं जो बहुत ही आकर्षक और मन भावन हैं हमने उसके भी दर्शन किये और फिर बाहर आ गये जहां हमें माता वैष्णों देवी स्थापना बोर्ड की तरफ से प्रसाद दिया गया उसे हमने सम्पूर्ण श्रद्धा पूर्वक गृहण किया और बाहर आकर थोड़ा जलपान गृहण कि किया तथा फिर भैरव नाथ जी के मन्दिर की चढ़ाई के लिये रवाना हो गयें और आनन्द लेते हुये कब 2 किलोमीटर निकल गये पता ही नहीं चला


भैरव जी का मन्दिर पहाड़ की एक उची चोटी पर बना हुआ है। वहां पर हमने प्रसाद चढ़ाया और रक्षा सूत्र बांधा तथा वहां की प्राकृतिक छटाओं का आनन्द लिया वहां का मौसम बहुत ही सुहाना रहता हैं 10-15 मिनट में धूप निकल आती हैं और कुछ ही समय में बारिश होने लगती हैं और वहां से बादल ऐसे लगते है कि हमसे नीचे हो  अर्थात वहां कह उचाई बहुत ही ज्यादा हैं कुल मीलाकर माता के दरबार की चढ़ई के दौरान रोजाना रास्ते में कम से कम दो तीन बार तो वर्षा हो ही जाती हैं और उस बारिश में भीगते हुये चलने का मजा ही कुछ दुसरा रहता हैं


वैसे तो हमने पुरे रास्ते में ही प्राकृतिक छटों के साथ हरियाली और सुनदर दृश्यों पर आपनी फोटो खिचवाये और खिचे लेकिन यहां आकर भी हमने बहुत सारे फोटो खिचे यहां पर खड़े होकर हमें ऐसा लग रहा था कि हम बादलों के बीच में खड़े हैं और बादल हमारे चारों तरफ हैं




यहा की जगह एक छज्जे नुमा हैं यहां बैठने के लिये भी जगह बनी हुई हैं यहा आकर मन को बहुत ही शान्ति मिलती हैं







 यहां से प्राकृतिक दृश्य मनभावन होने के साथ बहुत ही सुन्दर व मनोरम भी हैं यहां आकर मन करता है कि बस इस माता के दरबार में ही यहीं बैठे रहें यहां से वापस आने का मन ही नहीं करता  पर क्या करें दुनिया दारी है .... हम भी यहां से कुछ समय आराम करने के बाद कटरा की तरफ रवाना हो गयें 
यहां पर बन्दरों का खेलना शरारत  पक्षियों की चहचहाहट मन को लुभाने वाली लगती है। 
उतरते समय भी हमने बहुत ही आनन्द महसुश किया और सांय 6 बजे तक हम सब अपने होटल तक पहुंच चुके थे  वहां पर खना खाया और नहा धोकर थकावट होने के कारण सभी सो गयें और दुसरे दिन सुबह उठकर अपने गांव यानि झुन्झुनूं की तरफ रवाना हो गयें और आते समय एक दो दर्शन स्थलों, घाटियों को देखते हुये दुसरे दिन सुबह अपने शहर बगड़ पहुचे गये और वहां से अपने अपने साधनों द्वारा अपने घर पहुचे ये ये था हमार माता वैष्णों देवी तक का सफरनामाइस सफर में हमने बहुत ही आनन्द उठाये और माता के दर्शनों का लाभ उठाकर अपने जीवन को धन्य बनाया और अगली बार अगर माता ने चाहा तो दुबारा यात्रा की तैयारी की इच्छा के साथ इस वृतांत को यही विराम,  इजाज़त...
प्रेम से बोलो जय माता वैष्णो देवी की जय

आपके पढ़ने लायक यहां भी है।

अमृतसर, स्वर्ण मंदिर दर्शन

घुमंत् फिरत चलो मां वैष्णो देवी के दरबार

अन्दाज अपना-अपना (मानव जाति के शौकीन आधुनिक पूर्वज)

स्वतंत्रता दिवस और भारत देश ??? स्वतंत्रता ???

मायड़ भाषा राजस्थानी री शान बढ़ावण हाळा ब्लॉग


लक्ष्य

1 comment:

  1. हम तो बहुत साल पहले कोई 24 साल पहले गये थे वैष्णोदेवी । तब रास्ता ऊबड खाबड था पर हम में भी ताकत थी तो कर ही लिया । आप के लेख द्वार दुबारा जाने का आनंद मिल गया ।

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